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बालक को गुरुकुल तो भेजना ही होगा

इस देशमें कम से कम १३५ करोड़ अकस्मात् हुए है | यहाँ  बात वाहन दुर्घटना की नहीं, परन्तु आकस्मित रूप से जन्मे हुए बालको की है | १३५ करोड़ का अंक तो इसलिए योग्य है क्यूंकि अपने देशकी जितनी आबादी, उतने अकस्मात्, सही है ना। महत्म लोगो के जन्म से पूर्व क्या उनके माता पिता का बालक पैदा करने का कोई हेतु या ध्येय था क्या ? अगर नहीं, तो वह सब अकस्मातिक रूप से आये हुए बालक ही है |

बिना काम की कोई चीज हम घरमें नहीं रखते और उसे कूड़ा समज कर बहार फेक देते है | परन्तु विकार से जन्मी हुई यह सारे ध्येयशून्य बालको को धरती माता, प्रकृति एवं ईश्वर निःस्वार्थ भाव से संभाल रहे है | यही फर्क होता है मानवो और देवो के व्यवहार में.. और मानवोमे इन ही देवो के दूत यानि गुरुकुल के शिक्षक|

विकार से जन्मी आपकी संतान को गुरुकुल तो भेजना ही पड़ेगा, नहीं तो आपकी गलती कल पुरे समाज की गलती बन जाएगी और वो हमे मंजूर नहीं, यह एक गुरुकुल के शिक्षक का समाज को आह्वाहन है| अगर आप एक अच्छे बालक को जन्म के साथ अच्छा शिक्षण भी देते हो तो आपने अगली ४० पढ़ी तक ४०,०००  अच्छे व्यक्तिओ को धरती पर लाने का भगीरथ यज्ञ शरू किया है | अन्यथा आज बिना ध्येय और बिना शिक्षणके तैयार हुआ एक बच्चा ४०,००० दस्युओ के जन्म का भी कारण बन सकता है | पुराने यूरोप खंड के एक स्पार्टा नामक  देशमे तो इस बात को बहुत आग्रह पूर्व लिया था| वहा जो बालक देशके रक्षण हेतु काम नहीं कर सकता उसे तो जन्मके साथ ही मृत्यु दंड दिया जाता था| पर भारत तो हर बालक में ईश्वर का रूप देखता है और उसका दर्शन मात्र राष्ट्र रक्षा का नहीं परन्तु सम्पूर्ण मानव जाती के कल्याण का है | इस हेतु भारत के ऋषि-मुनिओने गुरुकुल परंपरा की स्थापना थी| परन्तु आज वो लुप्त हो गयी है, इसलिए अपने आप को भारतीय होने का गौरव लेने वाले दंपति का बालक भले आज जन्म ले पर गुरुकुलकी तैयारी उससे भी पहले से करनी पड़ेगी|

शार्दूल और वशिष्ठ के माध्यम से एक ऐसा वर्ग खड़ा हुआ है जो गर्भसे पूर्व बालक लाने के विचार के साथ ही उसके जीवन के ध्येय और संस्कार का प्रयत्न चालू कर देता है | ऐसे सभी जागृत दम्पति को शत शत नमन |